रातों को दिन बनाए ज़माने गुजर गये।

रातों को दिन बनाए ज़माने गुजर गये।

पी पी के जगमगाए ज़माने गुज़र गए

रातों को दिन बनाए ज़माने गुज़र गए

जान-ए-बहार फूल नहीं आदमी हूँ मैं

आ जा कि मुस्कुराए ज़माने गुज़र गए

क्या लाइक़-ए-सितम भी नहीं अब मैं दोस्तो

पत्थर भी घर में आए ज़माने गुज़र गए

ओ जाने वाले आ कि तिरे इंतिज़ार में

रस्ते को घर बनाए ज़माने गुज़र गए

ग़म है न अब ख़ुशी है न उम्मीद है न यास

सब से नजात पाए ज़माने गुज़र गए

मरने से वो डरें जो ब-क़ैद-ए-हयात हैं

मुझ को तो मौत आए ज़माने गुज़र गए

क्या क्या तवक़्क़ुआत थीं आहों से ऐ 'ख़ुमार'

ये तीर भी चलाए ज़माने गुज़र गए

   प्रस्तुति रेख्ता से​