रोज़ा तक़वा पैदा करने की बहुत बेहतरीन प्रेक्टिस।

रोज़ा तक़वा पैदा करने की बहुत बेहतरीन प्रेक्टिस।

 'रोज़े' को अरबी में 'सौम' कहते हैं. सौम के मायने होते हैं 'रुकना' दर असल रोज़ा रुक जाने का नाम है रोज़े में इंसान अमली तौर पर कुछ करता नहीं बल्कि नफ़्स और जिस्म की ख़्वाहिशों को पूरा करने से और खाने-पीने से रुक जाता है और यह रुक जाना ही इंसान के अंदर बर्दाश्त करने की ताक़त और नफ़्स को कंट्रोल रखने की आदत डालता है. इसी से तक़वा पैदा होता है लिहाज़ा रोज़ा दर असल कुछ करना नहीं बल्कि कुछ करने से रुक जाने का नाम है तक़वा (परहेज़गारी) है क्या? तक़वा का लुग़वी मायना ( Root Meaning) है बचना या डरना और इस्तलाही मायना ( The Meaning in Terms of Islamic Shariah) है अल्लाह की नाफ़रमानी से बचना और अल्लाह के ग़ज़ब से डरना अल्लाह के ग़ज़ब व अज़ाब से डरते हुए छोटे-बड़े तमाम गुनाहों से बचना, अखलाक़ी व अमली बुराइयों से बचना, अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नाफ़रमानियों से बचना, दरअसल यही तक़वा है रोज़ा तक़वा पैदा करने की बहुत बेहतरीन Practice है. क्योंकि रोज़े में भूखे प्यासे रहने की वजह से अपनी नफ़्स पर कंट्रोल रहता है और बर्दाश्त करने की ताक़त आती है. यही क़ुव्वते बर्दाश्त और नफ़्स पर कंट्रोल हमें गुनाह करने से रोकता है और नाफ़रमानियों से बचाता है. जिससे हमारे अंदर तक़वा पैदा होता है और यही रोज़ा रखने का असल मक़सद है