श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर और भी निखरता है इस मुस्लिम कवि का रस सौंदर्य।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर  और भी निखरता है इस मुस्लिम कवि का रस सौंदर्य।

 श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर फरीद इदरीसी की रिपोर्ट

श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर अगर बात होगी उनके जन्म की उनकी लीलाओं की उनके यश की उनके सौंदर्य और पराक्रम की उनकी बाल लीलाओं की उनके नटखट बचपन की तो हमेँ अवश्य बात करनी होगी एक महान मुस्लिम कवि सय्यद इब्राहिम की जिन्हें भारतीय साहित्य जगत रस खान के नाम से जानता है। इस मुस्लिम कवि रसखान ने भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का जो सजीव चित्रण अपनी लेखनी के माध्यम से किया है उसे कोई आत्मीयता के साथ श्रद्धा के सागर में गोते लगा कर ही कर सकता है। आपको बताते चले कि रसखान (जन्म:1548 ई) कृष्ण भक्त मुस्लिम कवि थे। उनका जन्म पिहानी के मोहल्ला मीर सराय में हुआ था। हिन्दी के कृष्ण भक्त तथा रीतिकालीन रीतिमुक्त कवियों में रसखान का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। वे गुरु विट्ठलनाथ के शिष्य थे एवं वल्लभ संप्रदाय के सदस्य थे। रसखान को 'रस की खान' कहा गया है। इनके काव्य में भक्ति, शृंगार रस दोनों प्रधानता से मिलते हैं। रसखान कृष्ण भक्त हैं और उनके सगुण और निर्गुण निराकार रूप दोनों के प्रति श्रद्धावनत हैं। रसखान के सगुण कृष्ण वे सारी लीलाएं करते हैं, जो कृष्ण लीला में प्रचलित रही हैं। यथा- बाललीला, रासलीला, फागलीला, कुंजलीला, प्रेम वाटिका, सुजान रसखान आदि। उन्होंने अपने काव्य की सीमित परिधि में इन असीमित लीलाओं को बखूबी बाँधा है। मथुरा जिले में महाबन में इनकी समाधि हैं। और ज़िला हरदोई के कस्बा पिहानी में सरकार द्वारा उनके नाम से प्रेक्षा गृह का निर्माण किया गया है। कुछ लोग दिल्ली के पास स्थित पिहानी को तो कुछ ज़िला हरदोई की पिहानी को आपका जन्म स्थल मानते हैं। उनके द्वारा रचित पंक्तियाँ यूँ ही ज़ुबान पर आ जाती हैं  भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने जिन मुस्लिम हरिभक्तों के लिये कहा था, "इन मुसलमान हरिजनन पर कोटिन हिन्दू वारिए" उनमें रसखान का नाम सर्वोपरि है। बोधा और आलम भी इसी परम्परा में आते हैं। सय्यद इब्राहीम "रसखान" का जन्म अन्तर्जाल पर उपलब्ध स्रोतों के अनुसार सन् 1533 से 1558 के बीच कभी हुआ था। कई विद्वानों के अनुसार इनका जन्म सन् 1548 ई. में हुआ था। चूँकि अकबर का राज्यकाल 1556-1605 है, ये लगभग अकबर के समकालीन हैं। इनका जन्म स्थान पिहानी जो कुछ लोगों के मतानुसार दिल्ली के समीप है। कुछ और लोगों के मतानुसार यह पिहानी उत्तरप्रदेश के हरदोई जिले में है।माना जाता है की इनकी मृत्यु 1628 में वृन्दावन में हुई थी । यह भी बताया जाता है कि रसखान ने भागवत का अनुवाद फारसी और हिंदी में किया।

    ​