बदायूं

भूल जाना उसे है नामुमकिन……….

गुलज़ारे सुखन द्वारा आयोजित मुशायरे में शायरों ने बांधा समां

पेश किए एक से एक बेहतरीन कलाम

बदायूं। गुलज़ारे सुखन साहित्यिक संस्था की ओर से शहर के मोहल्ला सोथा फरशोरी मंजिल पर मुशायरे का आयोजन किया गया। कौमी एकता को समर्पित मुशायरे में शायरों ने बेहतरीन कलाम पेश कर समां बांध दिया।
कार्यक्रम की शुरुआत डाॅ दानिश बदायूंनी ने नात ए पाक और कुमार आशीष ने सरस्वती वंदना पढ़कर की।
ग़ज़ल के सशक्त हस्ताक्षर शायर सुरेन्द्र नाज बदायूँनी ने जज्बात का इजहार यूँ किया-
अगर बेइल्म हो तो डिग्रियाँ कागज के टुकड़े हैं,
अगर हैं डिग्रियाँ तो ज्ञान भी होना जरूरी है।

सादिक अलापुरी ने सच्चाई का समर्थन किया-
जब दवा मोअतबर नहीं होती,
बात भी बा असर नहीं होती।

समर बदायूंनी ने नपे-तुले लहजे में सुनाया-
गुंचा-ओ-गुल कली से क्या मतलब,
तेरे होते किसी से क्या मतलब।

आज़म फरशोरी ने ग़ज़ल सुनाई-
जुल्म के चेहरे में जब भी शोखियां देखी गईं, दूर तक जलती हुई फिर बस्तियां देखी गईं।

कुमार आशीष ने मधुर स्वर में ग़ज़ल सुनाई-
जो इश्को उल्फत में मुब्तिला है, फकत मुहब्बत है उनका ईमाँ। न वो ये जानें कि दीन क्या है, हराम क्या है हलाल क्या है।

डाॅ दानिश बदायूंनी ने पढ़ा-
मयकदे में रिन्द सारे देखते रह जाएंगे,
जब उठाकर जाम कोई पारसा ले जाएगा।

शम्स मुजाहिदी बदायूंनी ने सुनाया-
भूल जाना उसे है नामुमकिन,
मेरे बचपन की वो निशानी है।

युवा शायर उज्ज्वल वशिष्ठ ने कड़वी सच्चाइयों की तरफ इशारा किया-
छिड़का जाता है जहर पौधों पर,
ये भी होता है बागवानी में।

संचालन कर रहे अरशद रसूल ने सुनाया-
शाह को होश तक नहीं आया,
शोर तो आसमान तक पहुंचा।

  • आखिर में अगली तरही शेअरी नशिस्त 4 अक्टूबर को कराने का ऐलान किया गया जिसका मिसरा है –
    दोस्ती का अलग *मज़ा* होगा।

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