आख़िर कहाँ गये इदरीसी तंजीमों से मदद पाने वाले ?
मतलब निकलने के बाद न समय देते न अदा करते शुक्रिया
कहाँ गये इदरीसी तंजीमों से मदद पाने वाले ?
समाज चाहे कोई भी हो समय चाहे कोई भी हो दौर चाहे कोई भी धर्म चाहे कोई भी हो हर जगह हर समाज में कभी न कभी कोई न कोई अपने समाज की उन्नति जागरूकता और विकास का दर्द और सपना लेकर बढ़ने वाला मौजूद रहा है। और अपने तन मन धन से प्रयास रत रहा है। लेकिन ये भी कड़वा सच है कि जिस समाज को बढ़ाने का शिखर पर ले जाने का जिसने भी प्रयास किया तो उसी के समाज के कुछ ज़हनी गुलाम और दूसरे हाथों की कठपुतलियों ने सदैव टांग खींचने का कार्य किया और गैरों के इशारों पर फंसाने गिराने का काम किया ये समाज के गद्दार कभी कम न रहे। वही कुछ होशियार लोग ग्रुपों में कभी बाढ़ के नाम पर कभी गरीबों की मदद के नाम पर कभी मकान की छतों के नाम पर कभी स्कूलों की मोटी मोटी फीस के नाम पर कभी रमजान और ईद के नाम पर कभी शादियों के नाम पर कभी बीमारियों के नाम पर कभी बेटियों को सिलाई सेंटर के नाम पर खुले आम ग्रुपों में मदद मांग कर अपना काम चलाते रहे। और न कभी अपने गांव में बिरादरी से मिल बैठे नकभी किसी तंजीमों के प्रोग्राम में मेहनत करते देखे गये। अगर ये लोग माली मदद नहीं कर सकते थे तो वक्त और मेहनत कर सकते थे।मगर इनका मकसद बिरादरी की मुहब्बतेंनहीं बल्कि तंजीमों का खून चूसना रहा इन की सोच रही कि कहीं से पैसा आता है।हज़ारों लाखों रुपयों को आपस में चंदा करके चाहे कोई भी बिरादरी की तंजीम हो सभी ने अपने अपने स्तर और हैसियत से पिछले कई सालों से देखा जा रहा है मदद की गयी और ये सिलसिला आज भी जारी है लोग अपने गांव कस्बे शहर में ज़िक्र भी करने में शर्म महसूस करते हैं और ग्रुपों में बड़ी आज़ादी के साथ मदद की गुहार लगाई जाती हैं। ये सब कुछ चल रहा है और चलता ही रहेगा। लोग मदद करने वाले भी हैं तो मदद मांगने वाले भी। लेकिन जब बिरादरी की तंजीमों द्वारा जब कोई प्रोग्राम किया जाता है या जिनकी फीसें जमा कराई गयी काम सिखाया गया ये लोग कभी इन तंजीमों का शुक्रिया अदा करने के बजाय पता नहीं कहाँ गायब हो जाते हैं ?

